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18.2.19

ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का:sahir ludhiyanavi




ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का
इस देश का यारों क्या कहना, ये देश है दुनिया का गहना

यहाँ चौड़ी छाती वीरों की, यहाँ भोली शक्लें हीरों की
यहाँ गाते हैं राँझे मस्ती में, मचती में धूमें बस्ती में

पेड़ों में बहारें झूलों की, राहों में कतारें फूलों की
यहाँ हँसता है सावन बालों में, खिलती हैं कलियाँ गालों में

कहीं दंगल शोख जवानों के, कहीं करतब तीर कमानों के
यहाँ नित नित मेले सजते हैं, नित ढोल और ताशे बजते हैं

दिलबर के लिये दिलदार हैं हम, दुश्मन के लिये तलवार हैं हम
मैदां में अगर हम डट जाएं, मुश्किल है कि पीछे हट जाएं
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10.2.19

किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है - साहिर लुधियानवी



किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है
परस्तिश की तमन्ना है, इबादत का इरादा है
किसी पत्थर की मूरत से ...

जो दिल की धड़कनें समझे न आँखों की ज़ुबाँ समझे
नज़र की गुफ़्तगू समझे न जज़बों का बयाँ समझे
उसी के सामने उसकी शिक़ायत का इरादा है
किसी पत्थर की मूरत से ...

मुहब्बत बेरुख़ी से और भड़केगी वो क्या जाने
तबीयत इस अदा पे और फड़केगी वो क्या जाने
वो क्या जाने कि अपना किस क़यामत का इरादा है
किसी पत्थर की मूरत से ...

सुना है हर जवाँ पत्थर के दिल में आग होती है
मगर जब तक न छेड़ो, शर्म के पर्दे में सोती है
ये सोचा है की दिल की बात उसके रूबरू कह दे
नतीजा कुच भी निकले आज अपनी आरज़ू कह दे
हर इक बेजाँ तक़ल्लुफ़ से बग़ावत का इरादा है
किसी पत्थर की मूरत से ...
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सुमन कैसे सौरभीले  ऑडियो सुनिए 



कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया - साहिर लुधियानवी



कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया ।

बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया ॥


हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को ।

क्या हुआ आज, यह किस बात पे रोना आया ?


किस लिए जीते हैं हम, किसके लिए जीते हैं ?

बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया ॥


कौन रोता है किसी और की ख़ातिर, ऐ दोस्त !

सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया ॥






इस रेशमी पाज़ेब की झंकार के सदके - साहिर लुधियानवी



इस रेशमी पाज़ेब की झंकार के सदके
जिस ने ये पहनाई है उस दिलदार के सदके

उस ज़ुल्फ़ के क़ुरबान लब-ओ-रुक़सार के सदके
हर जलवा था इक शोला हुस्न-ए-यार के सदके

जवानी माँगती ये हसीं झंकार बरसों से
तमन्ना बुन रही थी धड़कनों के तार बरसों से
छुप-छुप के आने वाले तेरे प्यार के सदके
इस रेशमी पाज़ेब की ...

जवानी सो रही थी हुस्न की रंगीं पनाहों में
चुरा लाये हम उन के नाज़नीं जलवे निगाहों में
क़िस्मत से जो हुआ है उस दीदार के सदके
उस ज़ुल्फ़ के क़ुरबान ...

नज़र लहरा रही थी ज़ीस्त पे मस्ती सी छाई है
दुबारा देखने की शौक़ ने हल्चल मचाई है
दिल को जो लग गया है उस अज़ार के सदके
इस रेशमी पाज़ेब की ...

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अब कोई गुलशन ना उजड़े - साहिर लुधियानवी







अब कोई गुलशन ना उजड़े अब वतन आज़ाद है
रूह गंगा की हिमालय का बदन आज़ाद है

खेतियाँ सोना उगाएँ, वादियाँ मोती लुटाएँ
आज गौतम की ज़मीं, तुलसी का बन आज़ाद है

मंदिरों में शंख बाजे, मस्जिदों में हो अज़ाँ
शेख का धर्म और दीन-ए-बरहमन आज़ाद है

लूट कैसी भी हो अब इस देश में रहने न पाए

आज सबके वास्ते धरती का धन आज़ाद है