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19.4.23

अरे कहीं देखा है तुमने:जयशंकर प्रसाद







जयशंकर प्रसाद










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अरे कहीं देखा है तुमने

मुझे प्यार करने वाले को?

मेरी आँखों में आकर फिर

आँसू बन ढरने वाले को?


सूने नभ में आग जलाकर

यह सुवर्ण-सा हृदय गला कर

जीवन संध्या को नहला कर

रिक्त जलधि भरने वाले को?


रजनी के लघु-लघु तम कन में

जगती की ऊष्मा के वन में

उस पर पड़ते तुहिन सघन में

छिप, मुझसे डरने वाले के?


निष्ठुर खेलों पर जो अपने

रहा देखता सुख के सपने

आज लगा है क्यों वह कँपने