उन्हें मनाने दो दीवाली--डॉ.दयाराम अलोक
इस कविता का वाचन you tube पर सुने डॉ .आलोक की आवाज
नवज्योति जयपुर अखबार में प्रकाशित डॉ.दयाराम आलोक की रचना-
नक्षत्रों की ज्योति मेघ का मुक्त हास धरती पर लाएं,
आओ दीप जलाकर जग को मंगलमय सद्पथ दिखलाएं।
युग बीते जग देख रहा है चकाचौंध जगमग दीवाली,
युद्ध द्रश्य है इधर ज्योति और उधर तिमिर मावस मतवाली।
नष्ट करो मालिन्य प्रसारो उज्वलता जगती ने जाना,
शृंगारित घर आंगन गलियां हुआ नयन रंजक वीराना।
अंधियारे के अधिवासों पर आओ दीप शिखा लहराएं,
आओ दीप जलाकर जग को मंगलमय सद्पथ दिखलाएं।
बाहर की सुन्दरता देखी अब अंतर की आंखे खोलो
घृणा,ग्लानि,ईर्षा ,दुर्गुण सब स्नेह,सत्य,समता से धोलो।
दीवाली का रूप हो जिसमें हर अभाव वैभव को छूले,
सम्प्रदाय-विद्वेष,ढोंग और कलुशित वर्ग विषमता भूलें।
यह प्रकाश वेला अति पावन सौहार्द्रिक सद्भाव जगाएं,
आओ दीप जलाकर जग को मंगलमय सद्पथ दिखलाएं।
ज्योतित जग में आज निहारो अश्रुपूर्ण लोचन कितने हैं,
वैभव के पोषक बेचारे दलित,क्षुधित पंजर कितने हैं।
हम न विचारें ऐसे मसले तब तक यह दीपक मेला है,
विस्फ़ोटक द्रव्यों से मानव खुश किन्तु प्रलय झेला है।
दयानंद,सुकरात दीप हैं जो सदियों तक राह दिखाएं,
आओ दीप जलाकर जग को मंगलमय सद्पथ दिखलाएं।
तुम मत ऐसे दीप जलाओ जिससे अंधकार उकसाए,
लुत्फ़ उठाना ठीक नहीं जो मजबूरों के दिल तडफ़ाए।
उन्हें मनाने दो दीवाली जिन्हें न खुशियां रास हुई हैं,
उन खुशियों को जीवन दे दो जो खुशियां बर्बाद हुई हैं।
ज्योति पर्व आवाहन करता जन मन दर्पण स्वच्छ बानाएं,
आओ दीप जलाकर जग को मंगलमय सद्पथ दिखलाएं।
आओ दीप जलाकर जग को मंगलमय सद्पथ दिखलाएं।
युग बीते जग देख रहा है चकाचौंध जगमग दीवाली,
युद्ध द्रश्य है इधर ज्योति और उधर तिमिर मावस मतवाली।
नष्ट करो मालिन्य प्रसारो उज्वलता जगती ने जाना,
शृंगारित घर आंगन गलियां हुआ नयन रंजक वीराना।
अंधियारे के अधिवासों पर आओ दीप शिखा लहराएं,
आओ दीप जलाकर जग को मंगलमय सद्पथ दिखलाएं।
बाहर की सुन्दरता देखी अब अंतर की आंखे खोलो
घृणा,ग्लानि,ईर्षा ,दुर्गुण सब स्नेह,सत्य,समता से धोलो।
दीवाली का रूप हो जिसमें हर अभाव वैभव को छूले,
सम्प्रदाय-विद्वेष,ढोंग और कलुशित वर्ग विषमता भूलें।
यह प्रकाश वेला अति पावन सौहार्द्रिक सद्भाव जगाएं,
आओ दीप जलाकर जग को मंगलमय सद्पथ दिखलाएं।
ज्योतित जग में आज निहारो अश्रुपूर्ण लोचन कितने हैं,
वैभव के पोषक बेचारे दलित,क्षुधित पंजर कितने हैं।
हम न विचारें ऐसे मसले तब तक यह दीपक मेला है,
विस्फ़ोटक द्रव्यों से मानव खुश किन्तु प्रलय झेला है।
दयानंद,सुकरात दीप हैं जो सदियों तक राह दिखाएं,
आओ दीप जलाकर जग को मंगलमय सद्पथ दिखलाएं।
तुम मत ऐसे दीप जलाओ जिससे अंधकार उकसाए,
लुत्फ़ उठाना ठीक नहीं जो मजबूरों के दिल तडफ़ाए।
उन्हें मनाने दो दीवाली जिन्हें न खुशियां रास हुई हैं,
उन खुशियों को जीवन दे दो जो खुशियां बर्बाद हुई हैं।
ज्योति पर्व आवाहन करता जन मन दर्पण स्वच्छ बानाएं,
आओ दीप जलाकर जग को मंगलमय सद्पथ दिखलाएं।
डॉ. दयाराम आलोक जी की यह कविता दीपावली पर्व की खूबसूरती को समेटे हुए है, और यह जयपुर से निकले वाले "नव ज्योति" अखबार में प्रकाशित हुई थी। कविता में दीपावली के पर्व को मंगलमय और सद्पथ दिखाने के लिए दीप जलाने का आह्वान किया गया है।
कविता में दीपावली के पर्व को युगों से चली आ रही परंपरा के रूप में दर्शाया गया है, जिसमें जगमग दीवाली के साथ-साथ युद्ध द्रश्य और तिमिर मावस का भी वर्णन किया गया है। कविता में दीपावली के पर्व को मंगलमय बनाने के लिए नष्ट करो मालिन्य प्रसारो उज्वलता का आह्वान किया गया है।
कविता में दीपावली के पर्व को सिर्फ बाहरी सुन्दरता के रूप में नहीं देखा गया है, बल्कि अंतर की आंखे खोलकर घृणा, ग्लानि, ईर्षा और दुर्गुणों को स्नेह, सत्य और समता से धोने का आह्वान किया गया है।
कविता में दीपावली के पर्व को सम्प्रदाय-विद्वेष, ढोंग और कलुशित वर्ग विषमता को भूलने के लिए भी आह्वान किया गया है। कविता में दीपावली के पर्व को प्रकाश वेला अति पावन सौहार्द्रिक सद्भाव जगाने के लिए भी आह्वान किया गया है।
कविता में दीपावली के पर्व को वैभव के पोषक बेचारे दलित और क्षुधित पंजर के लिए भी सोचा गया है। कविता में दीपावली के पर्व को दयानंद, सुकरात जैसे दीपों के रूप में दर्शाया गया है, जो सदियों तक राह दिखाते हैं।
कविता में दीपावली के पर्व को उन्हें मनाने दो जिन्हें न खुशियां रास हुई हैं, और उन खुशियों को जीवन दे दो जो खुशियां बर्बाद हुई हैं। कविता में दीपावली के पर्व को ज्योति पर्व आवाहन करता जन मन दर्पण स्वच्छ बानाने के लिए भी आह्वान किया गया है