22.2.19

पथहारा वक्तव्य - अशोक वाजपेयी




हमें पता था
कि खाली हाथ और टूटे हथियार लिए
शिविर में लौटना होगा:
यह भी कि हम जैसे लोग
कभी जीत नहीं पाए-
वे या तो हारते हैं
या खेत रहते हैं-
हम सिर्फ बचे हुए हैं
इस शर्म से कि हमने चुप्पी नहीं साधी,
कि हमने मोर्चा सम्हालने से पहले या हारने के बाद
न तो समर्पण किया, न समझौता:
हम लड़े, हारे और बचे भर हैं!
यह कोई वीरगाथा नहीं है:
इतिहास विजय की कथाएं कहता है,
उसमें प्रतिरोध और पराजय के लिए जगह नहीं होती।
लोग हमारी मूढ़ता पर हंसते हैं-
हमेशा की तरह
वे विजेताओं के जुलूस में
उत्साह से शामिल हैं-
हम भी इस भ्रम से मुक्त होने की कोशिश में हैं
कि हमने अलग से कोई साहस दिखाया:
हम तो कविता और अंत:करण के पाले में रहे
जो आदिकाल से युद्धरत हैं, रहेंगे!
हम पथहारे हैं
पर पथ हमसे कहीं आगे जाता है।
****************

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कितने दिन और बचे हैं? - अशोक वाजपेयी




कोई नहीं जानता कि
कितने दिन और बचे हैं?

चोंच में दाने दबाए
अपने घोंसले की ओर
उड़ती चिड़िया कब सुस्ताने बैठ जाएगी
बिजली के एक तार पर और
आल्हाद से झूलकर छू लेगी दूसरा तार भी।

वनखंडी में
आहिस्ता-आहिस्ता एक पगडंडी पार करता
कीड़ा आ जाएगा
सूखी लकड़ियाँ बीनती
बुढ़िया की फटी चप्पल के तले।

रेल के इंजन से निकलती
चिनगारी तेज़ हवा में उड़कर
चिपक जाएगी
एक डाल पर बैठी प्रसन्न तितली से।

कोई नहीं जानता कि
किनता समय और बचा है
प्रतीक्षा करने का
कि प्रेम आएगा एक पैकेट में डाक से,
कि थोड़ी देर और बाक़ी है
कटहल का अचार खाने लायक होने में,
कि पृथ्वी को फिर एक बार
हरा होने और आकाश को फिर दयालु और
उसे फिर विगलित होने में
अभी थोड़ा-सा समय और है।

दस्तक होगी दरवाज़े पर
और वह कहेगी कि
चलो, तुम्हारा समय हो चुका।
कोई नहीं जानता कि
कितना समय और बचा है,
मेरा या तुम्हारा।

वह आएगी –
जैसे आती है धूप
जैसे बरसता है मेघ
जैसे खिलखिलाती है
एक नन्हीं बच्ची
जैसे अंधेरे में भयातुर होता है
ख़ाली घर।
वह आएगी ज़रूर,
पर उसके आने के लिए
कितने दिन और बचे है
कोई नहीं जानता।

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21.2.19

राधे राधे श्याम मिला दे :भजन



राधे राधे , राधे राधे ,
राधे राधे , राधे राधे


राधे राधे, श्याम मिला दे
जय हो
राधे राधे, श्याम मिला दे

गोवर्धन में, राधे राधे
वृन्दावन में, राधे राधे
कुसुम सरोवर, राधे राधे
हरा कुन्ज में, राधे राधे
गोवर्धन में, राधे राधे
पीली पोखर, राधे राधे


मथुरा जी में, राधे राधे
वृन्दावन में, राधे राधे
कुन्ज कुन्ज में, राधे राधे
पात पात में, राधे राधे
डाल डाल में, राधे राधे
वृक्ष वृक्ष में , राधे राधे
हर आश्रम में, राधे राधे

माता बोले, राधे राधे
बहना बोले, राधे राधे
भाई बोले, राधे राधे
सब मिल बोलो, राधे राधे

राधे राधे,राधे राधे
राधे राधे, श्याम मिला दे

अरे
मथुरा जी में, राधे राधे
वृन्दावन में, राधे राधे
पीली पोखर , राधे राधे
गोवर्धन में, राधे राधे
सब मिल बोलो, राधे राधे
प्रेम से बोलो, राधे राधे
सब मिल बोलो, राधे राधे
अरे बोलो बोलो, राधे राधे
अरे गाओ गाओ, राधे राधे
सब मिल गाओ, राधे राधे
प्रेम से बोलो, राधे राधे
सब मिल बोलो, राधे राधे
जोर से बोलो, राधे राधे

राधे राधे,राधे राधे
राधे राधे, श्याम मिला दे
***************

18.2.19

ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का:sahir ludhiyanavi




ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का
इस देश का यारों क्या कहना, ये देश है दुनिया का गहना

यहाँ चौड़ी छाती वीरों की, यहाँ भोली शक्लें हीरों की
यहाँ गाते हैं राँझे मस्ती में, मचती में धूमें बस्ती में

पेड़ों में बहारें झूलों की, राहों में कतारें फूलों की
यहाँ हँसता है सावन बालों में, खिलती हैं कलियाँ गालों में

कहीं दंगल शोख जवानों के, कहीं करतब तीर कमानों के
यहाँ नित नित मेले सजते हैं, नित ढोल और ताशे बजते हैं

दिलबर के लिये दिलदार हैं हम, दुश्मन के लिये तलवार हैं हम
मैदां में अगर हम डट जाएं, मुश्किल है कि पीछे हट जाएं
*************

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12.2.19

हम आपके हैं कौन - बाबुल जो तुमने सिखाया:Ravindra Jain


बाबुल जो तुमने सिखाया, जो तुमसे पाया
सजन घर ले चली, सजन घर मैं चली

यादों के लेकर साये, चली घर पराये, तुम्हारी लाड़ली
कैसे भूल पाऊँगी मैं बाबा, सुनी जो तुमसे कहानियाँ
छोड़ चली आँगन में मइया, बचपन की निशानियाँ
सुन मेरी प्यारी बहना, सजाये रहना, ये बाबुल की गली
सजन घर मैं चली ...

बन गया परदेस घर जन्म का, मिली है दुनिया मुझे नयी
नाम जो पिया से मैं ने जोड़ा, नये रिश्तों से बँध गयी
मेरे ससुर जी पिता हैं, पति देवता हैं, देवर छवि कृष्ण की
सजन घर मैं चली ...
****************************

नदिया के पार - जब तक पूरे न हो फेरे सात:Ravidra jain





जब तक पूरे न हों फेरे सात
तब तक दुल्हिन नहीं दुल्हा की
तब तक बबुनी नहीं बबुआ की

अबही तो बबुआ पहली भँवर पड़ी है
अभी तो पहुना दिल्ली दूर खड़ी है
पहली भँवर पड़ी है,दिल्ली दूर खड़ी है
करनी होगी तपस्या सारी रात
सात फेरे सात जन्मों का साथ...

जैसे जैसे भँवर पड़े मन अंगना को छोड़े
एक एक भाँवर नाता अन्जानों से जोड़े
घर अंगना को छोड़े, नाता अन्जानों से जोड़े
सुख की बदरी आंसू की बरसात
सात फेरे सात जन्मों का साथ...

सात फेरे धरो बबुआ भरो सात वचन जी
ऐसे कन्या कैसे अर्पण कर दे तन भी मन भी
उठो उठो बबुनी देखो ध्रुव तारा
ध्रुव तारे सा हो अमर सुहाग तिहारा
ओ देखो देखो ध्रुव तारा, अमर सुहाग तिहारा
सातों फेरे सातों जन्मों का साथ...
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11.2.19

ऐसे हैं सुख सपन हमारे - नरेन्द्र शर्मा





ऐसे हैं सुख सपन हमारे

बन बन कर मिट जाते जैसे

बालू के घर नदी किनारे

ऐसे हैं सुख सपन हमारे....




लहरें आतीं, बह-बह जातीं

रेखाए बस रह-रह जातीं

जाते पल को कौन पुकारे

ऐसे हैं सुख सपन हमारे....




ऐसी इन सपनों की माया

जल पर जैसे चांद की छाया

चांद किसी के हाथ न आया

चाहे जितना हाथ पसारे

ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
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प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब रुकावट की कारगर हर्बल औषधि

सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

सायटिका रोग की रामबाण हर्बल औषधि

बांछड़ा जाती की जानकारी

नट जाति की जानकारी

बेड़िया जाति की जानकारी

सांसी जाती का इतिहास

हिन्दू मंदिरों और मुक्ति धाम को दयाराम अलोक द्वारा सीमेंट बैंच दान का सिलसिला

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गंगा, बहती हो क्यूँ :नरेन्द्र शर्मा




विस्तार है अपार.. प्रजा दोनो पार.. करे हाहाकार...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्ल्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार गंगा की धार,
निर्बल जन को, सबल संग्रामी, गमग्रोग्रामी,बनाती नहीं हो क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?

अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिन जन,
अज्ञ विहिन नेत्र विहिन दिक` मौन हो क्यूँ ?
व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोड़ती न क्यूँ ?
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीं हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?

अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिनजन,
अज्ञ विहिननेत्र विहिन दिक` मौन हो कयूँ ?
व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोडती न क्यूँ ?

विस्तार है अपार.. प्रजा दोनो पार.. करे हाहाकार...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?




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पाटीदार जाति की जानकारी

साहित्यमनीषी डॉ.दयाराम आलोक से इंटरव्यू

कुलदेवी का महत्व और जानकारी

ढोली(दमामी,नगारची ,बारेठ)) जाती का इतिहास

रजक (धोबी) जाती का इतिहास

जाट जाति की जानकारी और इतिहास

किडनी फेल (गुर्दे खराब ) की रामबाण औषधि

किडनी फेल रोगी का डाईट चार्ट और इलाज

प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब रुकावट की कारगर हर्बल औषधि

सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

सायटिका रोग की रामबाण हर्बल औषधि

बांछड़ा जाती की जानकारी

नट जाति की जानकारी

बेड़िया जाति की जानकारी

सांसी जाती का इतिहास

हिन्दू मंदिरों और मुक्ति धाम को दयाराम अलोक द्वारा सीमेंट बैंच दान का सिलसिला

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जब दीप जले आना जब शाम ढले आना:रविन्द्र जैन

                                         

जब दीप जले आना, जब शाम ढले आना
सन्देस मिलन का भूल न जाना मेरा प्यार ना बिसराना
जब दीप जले आना ...

नित सांझ सवेरे मिलते हैं
उन्हें देखके तारे खिलते हैं
लेते हैं विदा एक दूजे से कहते हैं चले आना
जब दीप जले आना ...

मैं पलकन डगर बुहारूंगा
तेरी राह निहारूंगा
मेरी प्रीत का काजल तुम अपने नैनों में मले आना
जब दीप जले आना ...

जहां पहली बार मिले थे हम
जिस जगह से संग चले थे हम
नदिया के किनारे आज उसी
अमवा के तले आना
जब दीप जले आना...
*****************

सुमन कैसे सौरभीले  ऑडियो सुनिए 

अँखियों के झरोखों से - रविन्द्र जैन

                                         



अँखियों के झरोखों से, मैने देखा जो सांवरे
तुम दूर नज़र आए, बड़ी दूर नज़र आए
बंद करके झरोखों को, ज़रा बैठी जो सोचने
मन में तुम्हीं मुस्काए, बस तुम्हीं मुस्काए
अँखियों के झरोखों से...

इक मन था मेरे पास वो अब खोने लगा है
पाकर तुझे हाय मुझे कुछ होने लगा है
इक तेरे भरोसे पे सब बैठी हूँ भूल के
यूँही उम्र गुज़र जाए, तेरे साथ गुज़र जाए
अँखियों के झरोखों से...

जीती हूँ तुम्हें देख के, मरती हूँ तुम्हीं पे
तुम हो जहाँ साजन मेरी दुनिया है वहीं पे
दिन रात दुआ माँगे मेरा मन तेरे वास्ते
कहीं अपनी उम्मीदों का कोई फूल न मुरझाए
अँखियों के झरोखों से...

मैं जब से तेरे प्यार के रंगों में रंगी हूँ
जगते हुए सोई रही नींदों में जगी हूँ
मेरे प्यार भरे सपने कहीं कोई न छीन ले
दिल सोच के घबराए, यही सोच के घबराए
अँखियों के झरोखों से ...

कुछ बोलके खामोशियाँ तड़पाने लगी हैं
चुप रहने से मजबूरियाँ याद आने लगी हैं
तू भी मेरी तरह हँस ले, आँसू पलकों पे थाम ले,
जितनी है खुशी यह भी अश्कों में ना बह जाए
अँखियों के झरोखों से...

कलियाँ ये सदा प्यार की मुसकाती रहेंगी
खामोशियाँ तुझसे मेरे अफ़साने कहेंगी
जी लूँगी नया जीवन तेरी यादों में बैठके
खुशबू जैसे फूलों में उड़ने से भी रह जाए
अँखियों के झरोखों से...
*************

सुमन कैसे सौरभीले  ऑडियो सुनिए 


10.2.19

किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है - साहिर लुधियानवी



किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है
परस्तिश की तमन्ना है, इबादत का इरादा है
किसी पत्थर की मूरत से ...

जो दिल की धड़कनें समझे न आँखों की ज़ुबाँ समझे
नज़र की गुफ़्तगू समझे न जज़बों का बयाँ समझे
उसी के सामने उसकी शिक़ायत का इरादा है
किसी पत्थर की मूरत से ...

मुहब्बत बेरुख़ी से और भड़केगी वो क्या जाने
तबीयत इस अदा पे और फड़केगी वो क्या जाने
वो क्या जाने कि अपना किस क़यामत का इरादा है
किसी पत्थर की मूरत से ...

सुना है हर जवाँ पत्थर के दिल में आग होती है
मगर जब तक न छेड़ो, शर्म के पर्दे में सोती है
ये सोचा है की दिल की बात उसके रूबरू कह दे
नतीजा कुच भी निकले आज अपनी आरज़ू कह दे
हर इक बेजाँ तक़ल्लुफ़ से बग़ावत का इरादा है
किसी पत्थर की मूरत से ...
***************

सुमन कैसे सौरभीले  ऑडियो सुनिए 



कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया - साहिर लुधियानवी



कभी ख़ुद पे, कभी हालात पे रोना आया ।

बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया ॥


हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को ।

क्या हुआ आज, यह किस बात पे रोना आया ?


किस लिए जीते हैं हम, किसके लिए जीते हैं ?

बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया ॥


कौन रोता है किसी और की ख़ातिर, ऐ दोस्त !

सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया ॥