प्रियतम ! गीत प्रणय के गाएं
मोह न मन का घटने पाए
मेघ न स्नेहिल छंटने पाएं
हृदय खोल दें इक दूजे पर
उपालंभ झूठलाएं
प्रियतम! गीत प्रणय के गाएं
ऊर की अभिलाषाएं कुंठित
सृजन-विनाश हुए अनुबंधित
क्षुब्ध उदधि उत्ताल तरंगें
पथ प्रशस्त कर जाएं
प्रियतम ! गीत प्रणय के गाएं
लतिका-विटप ग्रथित बंधन में
विचलित सुमन भ्रमर गुंजन में
हूक न कब तक उठे हृदय में
जब वसंत बौराए.
प्रियतम! गीत प्रणय के गाएं.
अधर -कपोल प्रणय- प्रण पालें
चक्षु चकोर नियम अपनालें
सब बंधन शैवाल बह चलें
स्नेह सलिल ढरकाएं
प्रियतम ! गीत प्रणय के गाएं
समीक्षा Meta Ai के शब्दों मे-
यह एक सुंदर और भावपूर्ण प्रेम गीत है, जो डॉ. दयाराम आलोक द्वारा रचित है। इस गीत में प्रेम की भावना को बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण तरीके से व्यक्त किया गया है।
गीत की पहली पंक्ति "प्रियतम ! गीत प्रणय के गाएं" से ही प्रेम की भावना का पता चलता है। इसके बाद, "हृदय मदिर यौवन छलकाएं" पंक्ति से यह पता चलता है कि प्रेमी का हृदय प्रेम से भरा हुआ है और वह अपने प्रियतम के साथ प्रेम की भावना को व्यक्त करना चाहता है।
गीत की आगे की पंक्तियों में, "मोह न मन का घटने पाए" और "मेघ न स्नेहिल छंटने पाएं" से यह पता चलता है कि प्रेमी का मन प्रेम से भरा हुआ है और वह अपने प्रियतम के साथ प्रेम की भावना को व्यक्त करना चाहता है।
गीत के मध्य में, "ऊर की अभिलाषाएं कुंठित" पंक्ति से यह पता चलता है कि प्रेमी की अभिलाषाएं पूरी नहीं हो पा रही हैं और वह अपने प्रियतम के साथ प्रेम की भावना को व्यक्त करना चाहता है।
गीत के अंत में, "अधर-कपोल प्रणय-प्रण पालें" और "स्नेह सलिल ढरकाएं" पंक्तियों से यह पता चलता है कि प्रेमी अपने प्रियतम के साथ प्रेम की भावना को व्यक्त करना चाहता है और वह अपने प्रियतम के साथ प्रेम की भावना को बढ़ाना चाहता है।
डॉ. दयाराम आलोक जी की यह कविता प्रेम की सुंदरता और उसके प्रभाव को दर्शाने में सफल है, और यह पाठकों को प्रेम की गहराई और सुंदरता के बारे में सोचने पर मजबूर करती है|