4.3.10

रात और प्रभात :डॉ.दयाराम आलोक


                  रात और प्रभात :डॉ.दयाराम आलोक    
                                               


        
                                  
रात,
भयानक अंधकार है,
कलुषित उद्वेगों का पौषक.
पथिक,
चल रहा डरता-डरता,
कठिन डगर पर धीमे-धीमे.
मंजिल,
दूर नजर आती है
आकर्षक,सुन्दर,मन भावन

दीप,
जल रहा
झिल मिल-झिल मिल,
सघन तिमिर से सतत जूझता.
दीपक की लौ,
कहती-"संभलो,
क्यों दुष्कृत्यों में डूबे हो,
मैं गवाह हूं
देख रही हूं
दुराचार  जो यहाँ  हो रहा."

तिमिर,
कुपित हो उठा
"दिये की ये हिम्मत है?"
अंधड को आदेश
कुचलने का दे डाला.

दीप लडा,
बलिदान हो गया
लीन हो गई उसकी आत्मा,
उस अनंत में

जिसमें लाखों ज्वालाएं हैं
अगणित दीपक मालाएं हैं

अंधकार हंस दिया-
"शत्रु का हुआ सफ़ाया"
आत्म शक्ति से रहित
प्राणियों के घट-घट में
तिमिर प्रतिष्ठित सहज हो गया

पर यह क्रम
चल सका न लंबा
रवि ने अपना रथ दौडाया,
दुष्ट तिमिर अवसान हो गया
रवि के प्रबल रश्मि अस्त्रों से
जग ने कहा-
"प्रभात हो गया"

समीक्षा- 

डॉ. दयाराम आलोक जी की कविता "रात" और "प्रभात" में अंधकार और प्रकाश की विजय का संदेश दिया गया है। कविता में रात को अंधकार और भय का प्रतीक बनाया गया है, जबकि प्रभात को प्रकाश और ज्ञान का प्रतीक।
कविता की पहली पंक्ति "भयानक अंधकार है, कलुषित उद्वेगों का पौषक" से यह स्पष्ट होता है कि रात अंधकार और भय का समय है। लेकिन दीपक की लौ, जो प्रकाश का प्रतीक है, अंधकार के खिलाफ लड़ती है और सत्य और न्याय की रक्षा करती है।
दीपक की लौ के शब्द "संभलो, क्यों दुष्कृत्यों में डूबे हो, मैं गवाह हूं देख रही हूं दुराचार जो यहाँ  हो रहा" से यह स्पष्ट होता है कि प्रकाश सत्य और न्याय की रक्षा करता है और अंधकार को हटाता है।
कविता के अंत में रवि की विजय और प्रभात की घोषणा से यह संदेश मिलता है कि सत्य और ज्ञान की विजय होती है और अंधकार और अज्ञान का नाश होता है।
यह कविता हमें यह सिखाती है कि हमें सत्य और ज्ञान की राह पर चलना चाहिए और अंधकार और अज्ञान से लड़ना चाहिए|

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