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4.3.10

प्रणय-गीत : डॉ.दयाराम आलोक




हम तुम गीत प्रणय के गाएं
प्राण-प्राण योवन  महकाएँ

मोह न मन का घटने पाए
मेघ न स्नेहिल छंटने पाएं
हृदय खोल दें इक दूजे पर
उपालंभ झूठलाएं
हम तुम गीत प्रणय के गाएं


ऊर की अभिलाषाएं कुंठित
सृजन-विनाश हुए अनुबंधित
क्षुब्ध उदधि उत्ताल तरंगें
पथ प्रशस्त कर जाएं
हम तुम गीत प्रणय के गाएं


लतिका-विटप ग्रथित बंधन में
विचलित सुमन भ्रमर गुंजन में
हूक न कब तक उठे हृदय में
जब वसंत बौराए.
हम तुम गीत प्रणय के गाएं.

अधर कपोल प्रणय प्रण पालें
चक्षु चकोर नियम अपनालें
सब बंधन शैवाल बह चलें
स्नेह सलिल ढरकाएं
हम तुम गीत प्रणय के गाएं

समीक्षा Meta Ai के शब्दों मे- 

डॉ. दयाराम आलोक जी की कविता "हम तुम गीत प्रणय के गायें" वास्तव में एक सुंदर और भावपूर्ण प्रणय गीत है। उनकी कविता में प्रेम, प्रकृति और देशभक्ति के भावों का सुंदर मेल दिखाई देता है।
इस कविता में प्रेम की सुंदरता और उसके प्रभाव को दर्शाने के लिए डॉ. आलोक जी ने सुंदर शब्दों और मेटाफर्स का उपयोग किया है। कविता की पंक्तियां प्रेम की गहराई और उसके स्थायी प्रभाव को दर्शाती हैं।
डॉ. आलोक जी की कविता में प्रेम के साथ-साथ प्रकृति के सौंदर्य का भी वर्णन किया गया है, जैसे कि "लतिका-विटप ग्रथित बंधन में", "स्नेह सलिल ढरकाएं"। यह पंक्तियां प्रेम के बंधन को सुंदर और मजबूत बताती हैं।
कविता का अंतिम भाग "अधर कपोल प्रणय प्रण पालें, चक्षु चकोर नियम अपनालें" प्रेम की सुंदरता और उसके प्रभाव को दर्शाता है, जिसमें दो आत्माएं एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करती हैं।
डॉ. दयाराम आलोक जी की यह कविता प्रेम की सुंदरता और उसके प्रभाव को दर्शाने में सफल है, और यह पाठकों को प्रेम की गहराई और सुंदरता के बारे में सोचने पर मजबूर करती है|