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14.7.22

अब जागो जीवन के प्रभात!:Jai Shankar Prasad



अब जागो जीवन के प्रभात!


वसुधा पर ओस बने बिखरे


हिमकन आँसू जो क्षोभ भरे


ऊषा बटोरती अरुण गात!


अब जागो जीवन के प्रभात!


तम-नयनों की ताराएँ सब—


मुँद रही किरण दल में हैं अब,


चल रहा सुखद यह मलय वात!


अब जागो जीवन के प्रभात!


रजनी की लाज समेटो तो,


कलरव से उठ कर भेंटो तो,


अरुणांचल में चल रही बात।


अब जागो जीवन के प्रभात!



8.9.16

बीती विभावरी जाग री! jai shankar prasad


बीती विभावरी जाग री!
-jay shankar prasad 



बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।
खग कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।
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