जब तक धरती पर अन्धकार मैं दीप जलाता जाऊंगा |
मै दीन-हीन ,नैराश्य-हृदय में मंगल ज्योति जलाऊंगा।
मानवता अब भी आत्म रोग ,अविवेक तिमिर में लिपटी है
धरती के मानव की हलचल भौतिक -बंधन में सिमटी है।
अनुभुति नहीं आदर्शों की अवसरवादी सिद्धांत सबल
हर ज्योति-पुंज से नफ़रत है सब ओर तिमिर साम्राज्य प्रबल
मैं गर्दिश के अभिषप्त मनुज को जीवन-पथ दिखलाऊंगा
जब तक धरती पर अंधकार मैं दीप जलाता जाऊंगा।
दीवाली पर दीपों की जगमग केवल रस्म निभाना है।
अपने घर-आंगन की सज-धज करलो आदर्श पुराना है।
पर कभी किसी ने इस जग मग से दूर कुटिर में झांका है?
उस घास फ़ूस की छत नीचे पंजर ने आटा फ़ांका है
मैं वैभव को एकांत अभावों का हमदर्द बनाऊंगा,
जब तक धरती पर अंधकार मैं दीप जलाता जाऊंगा।
ऋषि दयानंद ने आडंबर-पाखण्ड-पुंज पिघलाया था,
अज्ञान ,अशिक्षा मे गाफ़िल जन को सद्मार्ग दिखाया था।
गांधी,ईसा,सुकरात बुद्ध ने जग जीवन निर्माण किया,
पर अघ-लिप्तों ने युग पुरुषों का कब कितना सम्मान किया?
मैं ज्योति जलाने वालों को जग का आदर्श बनाऊंगा
जब तक धरती पर अंधकार मैं दीप जलाता जाऊंगा।
आलोक प्रशासन होते ही तम तुरत अंग सकुचाता है।
कच्छप गुणधारी तिमिर सदा अवसर पर घात लगाता है।
मायावी तम की हलचल में कितना मोहक आकर्षण है
सामान्य दीप के जीवन का अंधड से शक्ति परीक्षण है।
मैं बुझने वाले हर दीपक का संरक्षक बन जाऊंगा
जब तक धरती पर अंधकार मैं दीप जलाता जाऊंगा।
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