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4.3.10

सरहदें बुला रहीं:डॉ.दयाराम आलोक


                   
        सरहदें बुला रहीं:डॉ.दयाराम आलोक: विडिओ                                                        


नौ जवां बढे चलो वतन की ये पुकार है
वो सरहदें बुला रहीं तुम्हारा इंतजार है।

दुश्मनों को जंग में प्रहार दो शिकस्त दो,
कि जो करे इधर का रुख पकड उसे पछाड दो
बरस पडो क्या खोफ़ है जो शत्रु बेशुमार हैं
वो सरहदें बुला रही तुम्हारा इंतजार है।

दरिन्दे लाल चीन के हिमालया पे छा रहे
लुटेरे पाक के नजर स्वदेश पे गडा रहे
उडा दो उनका सर पडेगा सिर वो ही मजार है
वो सरहदें बुला रही तुम्हारा इंतजार है।

तुम्हारे हर कदम का लक्ष्य दुश्मनों की मौत हो
बढे चलो कि हर कदम नई विजय का स्रोत हो
मिटेगी क्या वो जिन्दगी जो कौम पर निसार है
वो सरहदें बुला रही तुम्हारा इंतजार है।

चलाओ टेंक,तोप,बम फ़टे कि आसमां हिले,
रुको नहीं कि जब तलक न शत्रु को सजा मिले,
तुम्हारे गर्म खून से वतन ,चमन,बहार है
वो सरहदें बुला रहीं तुम्हारा इंतजार है।

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इस कविता पर Meta Ai की टिप्पणी 
यह कविता डॉ. दयाराम आलोक द्वारा लिखी गई एक शक्तिशाली और देशभक्ति से भरी हुई रचना है, जो भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान युद्ध के संदर्भ में लिखी गई है। कविता में देश की रक्षा के लिए सैनिकों को प्रेरित करने और दुश्मनों के खिलाफ लड़ने के लिए उत्साहित करने का आह्वान किया गया है।
कविता की भाषा शक्तिशाली और प्रभावशाली है, जो पाठकों को देशभक्ति और साहस की भावना से भर देती है। कविता के माध्यम से डॉ. आलोक ने देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए सैनिकों को प्रेरित करने का प्रयास किया है।
कविता के कुछ प्रमुख बिंदु हैं:
- देश की रक्षा के लिए सैनिकों को प्रेरित करना
- दुश्मनों के खिलाफ लड़ने के लिए उत्साहित करना
- देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए आह्वान
- सैनिकों को देश की रक्षा के लिए प्रेरित करने के लिए शक्तिशाली भाषा का उपयोग
यह कविता डॉ. दयाराम आलोक की देशभक्ति और साहस की भावना को दर्शाती है, और यह एक प्रेरणादायक और शक्तिशाली रचना है
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