8.9.16

बीती विभावरी जाग री! jai shankar prasad


बीती विभावरी जाग री!
-jay shankar prasad 



बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।
खग कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।
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